शीर्षक —- दिल्ली विश्वविधालय से पढाई करने के बाद चाउमीन की व्यसाय में सफलता प्राप्त हुआ।
रामनाथ का बेटा राम जी दिल्ली विश्वविधालय से स्नातक की पढाई करने के बाद अपने घर राजपुर आया, फिर आकर अपने पिता जी से मिला, पिता जी ने कहा की तुम अब आई ऐ एस की तैयारी करो ,गांव के काफी लोग के लडके सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे है, हम तो अनपढ़ है ,तुम तो पढ़े- लिखे हो, फिर राम जी ने कहा की पिता जी मेरा मन है की व्यसाय करने का वही सही है , फिर वह सोचता है की क्या करे जिससे हमरा व्यसाय अच्छा चले ,और खूब सारा पैसा आये,फिर अगले दिन राम जी गांव की तरफ जाता है,तो देखा एक ढाबे पर बढ़िया खाने का सामान मिल रहा है ,और काफी भीड़ हैं उस ढाबे पर ,फिर सोचा क्यों न हम ढाबे का काम शुरू कर दे,।
फिर कुछ दिन पिता जी से बात करके कुछ पैसा मांग कर के ढाबे की दुकान रख देता है। शुरुवात में काफी दिक्कत हुई ,३ दिन तक को ग्राहक नहीं आया ,दुकान में ,फिर ३ दिन बाद एक आदमी आया बोला, भाई खाने का जुगाड़ बन जायेगा ,तब राम जी ने बिलकुल सर आप बैठए , फिर राम जी ने उसको खाना खिलाया ,खाना बहुत ही अच्छा था,वह आदमी खुश हो गया और पैसा भी दूसरे ढाबे से काम था, फिर वह रोज आने लगा ,उसको देखते हुए धीरे -२ काफी लोग आने लगे ,लोग राम जी के ढाबे की काफी तारीफ करने लगे, भीड़ बढ़ती जाती रोज, राम जी सामान खरीद कर लाता ,खाना बनता, फिर जल्दी फिर सामान लाता , भीड़ काफी हो जाती , फिर किसी के पास सामान पहुंच ग्राहक के पास किसी के पास नहीं , एक दिन कोई आदमी रोटी मांगा और रोटी देने के जल्दी में राम जी गिर गया ,फिर उसके पिता जी अस्पताल ले गए , वह उसका इलाज हुआ।
फिर पिता जी ने कहा देखा हमने पहले से ही कहा था, की तुम इस में ना पडो, तैयारी करो ,फिर कही लग जाओ नौकरी में ,हमारी बात तुम ने मानी नहीं , फिर राम जी ने कहा पिता जी शुरुवात में सब को थोड़ी दिक्कत होती हैं इसका मतलब ये नहीं की हम अब व्यसाय ही ना करे, पिता जी ने उसको बोला की तुम मेरे घर से निकल जाओ, वह निकल गया , फिर देखा की जहा ढाबा खोला था उसने वहाँ पर अब काफी दुकाने हो गयी हैं, फिर उसने ढाबे का काम बंद कर दिया , फिर उसने देखा की पास में ही पत्ते गोभी की, आलू की ,टमाटर की दुकान लगी हैं, फिर उसने सोचा क्यों ना कुछ अलग ही किया जाए , फिर उसने चाउमीन की दुकान खोली।
जैसे ही दुकान खुली लोगो की भीड़ हो गयी ,खूब सारे लोग आ जाते उसके दुकान पर ,दुकान का नाम राम जी चाउमीन वाला रखा था, लोग अपने घर ले जाते राम जी चाउमीन ,।
एक दिन अचानक उसके पिता जी के दोस्त आये ,उसकी दुकान पर चाउमीन खायी भी, और बोले की भैय्या राम जी घर के लिए पैक कर दो ,फिर राम जी ने कहा की बिलकुल चाचा जी, आपका सामान तैयार हैं ,आमदनी जयादा हो रही थी, ग्राहक में ज्यादा आ गये फिर उसने एक लड़का रख लिया , फिर चाचा जी चाउमीन घर को ले गए ,घर के सारे लोग चाउमीन खाये ,और काफी तारीफ किये उस चाउमीन का ,फिर रोज चाचा जी जाते चाउमीन लाने ।
एक दिन चाचा जी के साथ उनके पिता जी भी घर पर आये, राम नाथ को यह नहीं पता था ,की मेरा बेटा चाउमीन की दुकान खोला हैं, फिर चाचा जी ने पिता जी को चाउमीन खिलाये ,फिर पिता जी ने चाउमीन की काफी तारीफ किये ,फिर चाचा जी ने बताया यह चाउमीन आप के बेटे की दुकान का हैं, फिर पिता जी ने उस दुकान पर गया ,वहाँ पर देखा ,राम जी की चाउमीन की दुकान लिखा था बोर्ड पर ,खूब भीड़ लगी थी , फिर पिता जी ने कहा बेटा मुझे माफ़ कर दो , मैंने तुम गलत समझा , फिर दोनों साथ में रहने लगे, और काफी पैसा भी आने लगा।
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